Monday, December 30, 2019

सूर्यग्रहण को इस बार क्यों बताया जा रहा है ख़ास?

अब इन चार दोषियों अक्षय, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और मुकेश सिंह को एक महीने के भीतर अपनी-अपनी क्यूरेटिव याचिका दायर करनी होगी. चारों दोषियों के पास यह अंतिम क़ानूनी सहारा बचा है. इसके बाद उनके पास एक संवैधानिक सहारा बचेगा और वह है राष्ट्रपति के पास दया याचिका का.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

भारत में क़ानून के बड़े जानकार और वरिष्ठ अधिवक्ता मानते हैं कि इस मामले के चारों दोषियों को जल्दी ही फांसी हो जाएगी. इन चारों दोषियों की पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है और अब क्यूरेटिव और दया याचिका ही दो अंतिम विकल्प बाकी बचे हैं.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

माना जा रहा है कि इन दोनों रास्तों पर भी दोषियों को कोई राहत नहीं मिलेगी क्योंकि इस घटना को बेहद जघन्य अपराध की श्रेणी में रखा गया है. निर्भया मामले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

पूर्व सॉलिसिटर जनरल और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मोहन परासरन कहते हैं, ''यह माना जा रहा है कि आने वाले तीन-चार महीनों में इन चारों दोषियों को फांसी हो जाएगी.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

परासरन ने बीबीसी से कहा, ''उन्हें जल्दी ही फांसी की सज़ा हो जाएगी. क्योंकि उनकी पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है. मेरे ख़याल से इस पूरे मामले में हुई बर्बरता को देखते हुए उनकी क्यूरेटिव पिटीशन और दया याचिका पर भी ग़ौर नहीं किया जाएगा.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वरिष्ठ वकील और पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.सी. कौशिक का भी मानना है कि आने वाले दो तीन महीनों में दोषियों को फांसी दे दी जाएगी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वो कहते हैं, ''मेरे विचार से क्यूरेटिव और दया याचिका दोनों ही ख़ारिज हो जाएंगी. यह मामला बेहद जघन्य अपराध की श्रेणी में है. इस मामले के दोषियों के पास जो भी क़ानूनी और संवैधानिक विकल्प हैं वो दो-तीन महीनों में समाप्त हो जाएंगे.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

कौशिक यह भी कहते हैं कि अब इस मामले में दो-तीन महीने से ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा.

बीबीसी के साथ बातचीत में वो कहते हैं, ''जैसे कि उनकी पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है इसके बाद उनकी क्यूरेटिव और दया याचिका भी ख़ारिज हो सकती है तो ऐसे में सभी दोषियों को फांसी मिलने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

आपराधिक मामलों के वकील विकास पाहवा कहते हैं कि इस मामले का जल्द से जल्द एक बेहतर और तर्कपूर्ण अंत होना चाहिए.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वो कहते हैं, ''एक तयशुदा वक़्त यानी दो-तीन महीने में सभी क़ानूनी विकल्प पूरे हो जाएंगे और इसके बाद दोषियों को फांसी निश्चित हो जाएगी.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

तीन दोषी अक्षय, पवन और विनय के वकील ए.पी. सिंह का कहना है कि उनके तीनों मुवक्किल ग़रीब परिवारों से आते हैं इसलिए उन्हें कम सज़ा दी जानी चाहिए और उन्हें सुधरने का एक मौक़ा मिलना चाहिए.

बीबीसी के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, ''मेरे सभी मुवक्किलों को सुधरने का एक मौक़ा मिलना चाहिए. वो ग़रीब हैं और उन्हें एक मौक़ा मिलना चाहिए कि वो भी देश के अच्छे नागरिक के तौर पर ख़ुद को साबित कर सकें.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

चारों अपराधी, मुकेश, अक्षय, पवन और विनय ने मार्च 2014 में दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था. दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश में इन सभी को मौत की सज़ा देने पर मंज़ूरी दी गई थी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

इससे पहले 13 सितंबर 2013 को ट्रायल कोर्ट ने सभी दोषियों को मौत की सज़ा सुनाई थी.

इसके बाद 5 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने भी दोषियों की सभी अपीलों को ख़ारिज कर दिया था. इसके बाद तीन दोषियों पवन, विनय और मुकेश ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसे 9 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

उस समय जिस बेंच ने वह पुनर्विचार याचिका ख़ारिज की थी उसके अध्यक्ष जस्टिस दीपक मिश्रा थे. उन्होंने इस घटना को 'सदमे की सुनामी' बताया था.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

अपने लंबे चौड़े फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपराधियों के बर्ताव को जानवरों जैसा बताया था और कहा था कि ऐसा लगता है कि ये पूरा मामला ही किसी दूसरी दुनिया में घटित हुआ जहां मानवता के साथ बर्बरता की जाती है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

16 दिसंबर 2012 की रात राजधानी दिल्ली में 23 साल की एक मेडिकल छात्रा के साथ छह पुरुषों ने एक चलती बस में गैंगरेप किया था.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

चार दोषियों के अलावा एक प्रमुख आरोपी राम सिंह ने ट्रायल के दौरान ही तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी.

एक अन्य अपराधी जो घटना के वक़्त नाबालिग़ साबित हुआ था, उसे सुधारगृह भेजा गया था. साल 2015 में उसे सुधारगृह से रिहा कर दिया गया था. इस अपराधी का नाम ज़ाहिर नहीं किया जा सकता. इसे अगस्त 2013 में तीन साल सुधारगृह में बिताने की सज़ा सुनाई गई थी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

अब यह अपराधी व्यस्क हो चुका है, लेकिन तय नियमों के अनुसार उन्होंने अपनी सज़ा पूरी कर ली है. अब वो एक चैरिटी संस्था के साथ है क्योंकि बाहर उन्हें सुरक्षा का ख़तरा बना हुआ है.

देश की राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को हुए निर्भया मामले के चारों दोषियों का केस अब लगभग पूरा होने वाला है. इन चारों पर गैंगरेप और हत्या का मामला दर्ज है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अंतिम पुनर्विचार याचिका को ख़ारिज किया है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस आर. भानुमति की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने इस याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा, ''हम दोषी साबित हो चुके अक्षय कुमार की याचिका ख़ारिज करते हैं. उनकी याचिका पर दोबारा विचार करने जैसा कुछ नहीं है.'' इस पीठ में जस्टिस अशोक भूषण और ए.एस. बोपन्ना भी थे.

अब इन चार दो अक्षय, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और मुकेश सिंह को एक मषियों अक्षय, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और मुकेश सिंह को एक महीने के भीतर अपनी-अपनी क्यूरेटिव याचिका दायर करनी होगी. चारों दोषियों के पास यह अंतिम क़ानूनी सहारा बचा है. इसके बाद उनके पास एक संवैधानिक सहारा बचेगा और वह है राष्ट्रपति के पास दया याचिका का.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

भारत में क़ानून के बड़े जानकार और वरिष्ठ अधिवक्ता मानते हैं कि इस मामले के चारों दोषियों को जल्दी ही फांसी हो जाएगी. इन चारों दोषियों की पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है और अब क्यूरेटिव और दया याचिका ही दो अंतिम विकल्प बाकी बचे हैं.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

माना जा रहा है कि इन दोनों रास्तों पर भी दोषियों को कोई राहत नहीं मिलेगी क्योंकि इस घटना को बेहद जघन्य अपराध की श्रेणी में रखा गया है. निर्भया मामले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था.

पूर्व सॉलिसिटर जनरल और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मोहन परासरन कहते हैं, ''यह माना जा रहा है कि आने वाले तीन-चार महीनों में इन चारों दोषियों को फांसी हो जाएगी.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

परासरन ने बीबीसी से कहा, ''उन्हें जल्दी ही फांसी की सज़ा हो जाएगी. क्योंकि उनकी पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है. मेरे ख़याल से इस पूरे मामले में हुई बर्बरता को देखते हुए उनकी क्यूरेटिव पिटीशन और दया याचिका पर भी ग़ौर नहीं किया जाएगा.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वरिष्ठ वकील और पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.सी. कौशिक का भी मानना है कि आने वाले दो तीन महीनों में दोषियों को फांसी दे दी जाएगी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वो कहते हैं, ''मेरे विचार से क्यूरेटिव और दया याचिका दोनों ही ख़ारिज हो जाएंगी. यह मामला बेहद जघन्य अपराध की श्रेणी में है. इस मामले के दोषियों के पास जो भी क़ानूनी और संवैधानिक विकल्प हैं वो दो-तीन महीनों में समाप्त हो जाएंगे.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

कौशिक यह भी कहते हैं कि अब इस मामले में दो-तीन महीने से ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

बीबीसी के साथ बातचीत में वो कहते हैं, ''जैसे कि उनकी पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है इसके बाद उनकी क्यूरेटिव और दया याचिका भी ख़ारिज हो सकती है तो ऐसे में सभी दोषियों को फांसी मिलने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

आपराधिक मामलों के वकील विकास पाहवा कहते हैं कि इस मामले का जल्द से जल्द एक बेहतर और तर्कपूर्ण अंत होना चाहिए.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वो कहते हैं, ''एक तयशुदा वक़्त यानी दो-तीन महीने में सभी क़ानूनी विकल्प पूरे हो जाएंगे और इसके बाद दोषियों को फांसी निश्चित हो जाएगी.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

तीन दोषी अक्षय, पवन और विनय के वकील ए.पी. सिंह का कहना है कि उनके तीनों मुवक्किल ग़रीब परिवारों से आते हैं इसलिए उन्हें कम सज़ा दी जानी चाहिए और उन्हें सुधरने का एक मौक़ा मिलना चाहिए.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

बीबीसी के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, ''मेरे सभी मुवक्किलों को सुधरने का एक मौक़ा मिलना चाहिए. वो ग़रीब हैं और उन्हें एक मौक़ा मिलना चाहिए कि वो भी देश के अच्छे नागरिक के तौर पर ख़ुद को साबित कर सकें.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

चारों अपराधी, मुकेश, अक्षय, पवन और विनय ने मार्च 2014 में दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था. दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश में इन सभी को मौत की सज़ा देने पर मंज़ूरी दी गई थी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

इससे पहले 13 सितंबर 2013 को ट्रायल कोर्ट ने सभी दोषियों को मौत की सज़ा सुनाई थी.

इसके बाद 5 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने भी दोषियों की सभी अपीलों को ख़ारिज कर दिया था. इसके बाद तीन दोषियों पवन, विनय और मुकेश ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसे 9 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

उस समय जिस बेंच ने वह पुनर्विचार याचिका ख़ारिज की थी उसके अध्यक्ष जस्टिस दीपक मिश्रा थे. उन्होंने इस घटना को 'सदमे की सुनामी' बताया था.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

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16 दिसंबर 2012 की रात राजधानी दिल्ली में 23 साल की एक मेडिकल छात्रा के साथ छह पुरुषों ने एक चलती बस में गैंगरेप किया था.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

चार दोषियों के अलावा एक प्रमुख आरोपी राम सिंह ने ट्रायल के दौरान ही तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी.

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अब यह अपराधी व्यस्क हो चुका है, लेकिन तय नियमों के अनुसार उन्होंने अपनी सज़ा पूरी कर ली है. अब वो एक चैरिटी संस्था के साथ है क्योंकि बाहर उन्हें सुरक्षा का ख़तरा बना हुआ है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

देश की राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को हुए निर्भया मामले के चारों दोषियों का केस अब लगभग पूरा होने वाला है. इन चारों पर गैंगरेप और हत्या का मामला दर्ज है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अंतिम पुनर्विचार याचिका को ख़ारिज किया है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस आर. भानुमति की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने इस याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा, ''हम दोषी साबित हो चुके अक्षय कुमार की याचिका ख़ारिज करते हैं. उनकी याचिका पर दोबारा विचार करने जैसा कुछ नहीं है.'' इस पीठ में जस्टिस अशोक भूषण और ए.एस. बोपन्ना भी थे.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

अब इन चार दोषियों अक्षय, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और मुकेश सिंह को एक महीने के भीतर अपनी-अपनी क्यूरेटिव याचिका दायर करनी होगी. चारों दोषियों के पास यह अंतिम क़ानूनी सहारा बचा है. इसके बाद उनके पास एक संवैधानिक सहारा बचेगा और वह है राष्ट्रपति के पास दया याचिका का.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

भारत में क़ानून के बड़े जानकार और वरिष्ठ अधिवक्ता मानते हैं कि इस मामले के चारों दोषियों को जल्दी ही फांसी हो जाएगी. इन चारों दोषियों की पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है और अब क्यूरेटिव और दया याचिका ही दो अंतिम विकल्प बाकी बचे हैं.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

माना जा रहा है कि इन दोनों रास्तों पर भी दोषियों को कोई राहत नहीं मिलेगी क्योंकि इस घटना को बेहद जघन्य अपराध की श्रेणी में रखा गया है. निर्भया मामले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था.

पूर्व सॉलिसिटर जनरल और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मोहन परासरन कहते हैं, ''यह माना जा रहा है कि आने वाले तीन-चार महीनों में इन चारों दोषियों को फांसी हो जाएगी.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

परासरन ने बीबीसी से कहा, ''उन्हें जल्दी ही फांसी की सज़ा हो जाएगी. क्योंकि उनकी पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है. मेरे ख़याल से इस पूरे मामले में हुई बर्बरता को देखते हुए उनकी क्यूरेटिव पिटीशन और दया याचिका पर भी ग़ौर नहीं किया जाएगा.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वरिष्ठ वकील और पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.सी. कौशिक का भी मानना है कि आने वाले दो तीन महीनों में दोषियों को फांसी दे दी जाएगी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वो कहते हैं, ''मेरे विचार से क्यूरेटिव और दया याचिका दोनों ही ख़ारिज हो जाएंगी. यह मामला बेहद जघन्य अपराध की श्रेणी में है. इस मामले के दोषियों के पास जो भी क़ानूनी और संवैधानिक विकल्प हैं वो दो-तीन महीनों में समाप्त हो जाएंगे.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

कौशिक यह भी कहते हैं कि अब इस मामले में दो-तीन महीने से ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा.

बीबीसी के साथ बातचीत में वो कहते हैं, ''जैसे कि उनकी पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है इसके बाद उनकी क्यूरेटिव और दया याचिका भी ख़ारिज हो सकती है तो ऐसे में सभी दोषियों को फांसी मिलने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

आपराधिक मामलों के वकील विकास पाहवा कहते हैं कि इस मामले का जल्द से जल्द एक बेहतर और तर्कपूर्ण अंत होना चाहिए.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

वो कहते हैं, ''एक तयशुदा वक़्त यानी दो-तीन महीने में सभी क़ानूनी विकल्प पूरे हो जाएंगे और इसके बाद दोषियों को फांसी निश्चित हो जाएगी.''मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

तीन दोषी अक्षय, पवन और विनय के वकील ए.पी. सिंह का कहना है कि उनके तीनों मुवक्किल ग़रीब परिवारों से आते हैं इसलिए उन्हें कम सज़ा दी जानी चाहिए और उन्हें सुधरने का एक मौक़ा मिलना चाहिए.

Thursday, December 19, 2019

नागरिक संशोधन क़ानून: ममता बनर्जी आख़िर NPR का विरोध क्यों कर रही हैं?

नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध के बीच पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने एनपीआर यानी राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के अपडेशन का काम रोक दिया है.
मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह
इस बाबत ममता सरकार ने सभी ज़िलाधिकारियों को निर्देश भेज दिए हैं.

सोमवार को जारी इस आदेश को जनहित में लिया गया फ़ैसला बताया गया है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

ममता पहले यह लगातार कहती रही हैं कि वो अपने राज्य में एनआरसी और नागरिकता संशोधन क़ानून लागू नहीं होने देंगी, लेकिन एनपीआर को लेकर उहापोह की स्थिति में थी.

एनआरसी का विरोध और एनपीआर का समर्थन करने के कारण बीजेपी को छोड़कर विपक्षी पार्टियां ममता बनर्जी की खिंचाई करती रही हैं.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

हालांकि अब ममता के नए फ़ैसले के बारे में पश्चिम बंगाल की राजनीति पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर एम कहते हैं कि सीपीएम ने इसका स्वागत किया है.

वहीं प्रभाकर एम कहते हैं कि बीजेपी का कहना है कि एनपीआर का काम राष्ट्रीय जनगणना अधिनियम के तहत हो रहा था लिहाजा ममता बनर्जी का फ़ैसला असंवैधानिक है.

ममता बनर्जी एनआरसी के ख़िलाफ़ हैं. बंगाल में अल्पसंख्यक बड़ा वोट बैंक है और वे निर्णायक स्थिति में हैं. तीन दशकों से भी अधिक समय तक ये वोट बैंक वामदल के साथ था. 2011 में जब ममता सत्ता में आईं तो ज़मीन अधिग्रहण विरोधी आंदोलनों के साथ उन्हें अल्पसंख्यक वोट बैंक का भी उनको समर्थन मिला और बंगाल में ये लगभग 30 फ़ीसदी हैं.

वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर एम कहते हैं, "असम में एनआरसी की लिस्ट जब आमुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रहई और उसमें क़रीब 19 लाख लोग बाहर रहे तो उसका असर बंगाल पर भी पड़ा. ममता तब से एनआरसी का मुखर विरोध करती रही हैं."

वे बताते हैं, "घुसपैठ की समस्या असम से ज़्यादा बंगाल में है. इसकी लंबी सीमा बांग्लादेश के साथ सटी हुई है. विभाजन के बाद से ही लोग यहां आते रहे हैं. 1971 में बांग्लादेश के गठन मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रहके साथ ही वहां से बड़ी संख्या में लोग यहां आए." "सत्तारूढ़ दल उनको वोटर कार्ड, राशन कार्ड देकर उन्हें यहां बसाती रही हैं. इन अल्पसंख्यकों में एनआरसी को लेकर डर है. और जब एनपीआर का काम शुरू हुआ तो यह डर और बढ़ गया और अब आग में घी का काम नागरिकता संशोधन क़ानून ने किया है. इससे इस तबके को लग रहा है कि उन्हें छांट कर यहां से निकाल दिया जाएगा. यही वजह है कि ममता बनर्जी ने एनपीआर का काम फ़िलहाल बंद करवा दिया है."

सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने इस पर सफ़ाई दी है कि राज्य में विरोध प्रदर्शन और हिंसा हो रही है उसको देखते हुए सरकार ने अस्थायी तौर पर यह फ़ैसला किया है ताकि लोगों में और डर न फैले.

दूसरी तरफ सीपीएम नेता सुजन चक्रवर्ती ने कहा कि राज्य सरकार दोहरी नीति अपना रही है. उन्होंने फ़ैसले का स्वागत तो किया लेकिन कहा कि एक ओर सरकार एनआरसी का विरोध करती रही है लेकिन दूसरी तरफ एनपीआर का काम आखिर शुरू ही क्यों करवाया?

बंगाल सरकार के इस फ़ैसले से उपजी स्थिति के मद्देनज़र चलिए जानते हैं कि क्या है एनपीआर, एनआरसी और जनगणना और ये एक-दूसरे से कैसे अलग हैं?मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

दरअसल, देश के प्रत्येक नागरिक की सामाजिक, आर्थिक स्थिति का आकलन करने और इसके आधार पर किसी क्षेत्र विशेष में विकास कार्यों को लेकर सरकारी नीतियों का निर्धारण करने के लिए लोगों की गिनती यानी जनगणना हर 10 साल में की जाती है.

इसमें गांव, शहर में रहने वालों की गिनती के साथ साथ उनके रोज़गार, जीवन स्तर, आर्थिक स्थिति, शैक्षणिक स्थिति, उम्र, लिंग, व्यवसाय इत्यादि से जुड़े आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं. इन आंकड़ों का इस्तेमाल केंद्र और राज्य सरकारें नीतियां बनाने के लिए करती हैं.

जनगणना कराने की ज़िम्मेदारी केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत आने वाले भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त के दफ़्तर की होती है.

इसे वैधानिक दर्जा देने के लिए 1948 में जनगणना अधिनियम पारित किया गया था.

गृह मंत्रालय के मुताबिक देश में पहली बार 1872 में जनगणना की गई थी. तब से लेकर 1941 तक इसमें नागरिकों की जाति पूछी जाती थी लेकिन इसके बाद से इसमें से जाति कोमुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह हटा दिया गया.

वैसे जनगणना में यह सवाल ज़रूर पूछा जाता रहा है कि क्या आप किसी अनुसूचित जाति से संबंधित हैं और इसमें आपकी जाति क्या है. हालांकि, इसके पक्ष में तर्क यह दिया जाता है कि 'अनुसूचित जाति को आबादी के अनुपात में राजनीतिक आरक्षण दिया जाएगा, यह संविधान में प्रावधान है. इसलिए उनकी आबादी को जानना एक संवैधानिक ज़रूरत है.'

आज़ादी के बाद 1951 में पहली जनगणना करवाई गई. प्रत्येक 10 साल में होने वाली जनगणना आज़ादी के बाद अब तक कुल 7 बार करवाई जा चुकी है.

अभी 2011 में की गई जनगणना के डेटा उपलब्ध हैं और 2021 की जनगणना का काम चल रहा है.
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इसे तैयार करने में क़रीब तीन साल का समय लगता है. सबसे पहले जनगणना के लिए अधिकारी निर्धारित किए जाते हैं जो घर-घर जाकर निजी आंकड़े जमा करते हैं और लोगों से सवाल पूछकर जनगणना फॉर्म भरते हैं.

इसमें आयु, लिंग, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति, धर्म, व्यवसाय आदि से जुड़े सवाल होते हैं. 2011 की जनगणना में ऐसे कुल 29 सवाल पूछे गए.

इन आंकड़ों से ही पता चलता है कि देश में जनसंख्या क्या है, इनमें कितनी महिलाएं और कितने पुरुष हैं, ये किस आयु वर्ग के हैं, कौन सी भाषाएं बोलते हैं, किस धर्म का पालन करते हैं, उनके शिक्षा का स्तर क्या है, कितने लोग शादीशुदा हैं, बीते 10 सालों में कितने बच्चों को जन्म हुआ, कितने लोग रोज़गार में हैं, कितने लोगों ने बीते 10 सालों में अपने रहने का स्थान बदल लिया है, इत्यादि. नियमानुसार, लोगों की इन निजी सूचनाओं को सरकार गोपनीय रखती है.

इन आंकड़ों से देश के नागरिकों की वास्तविक स्थिति सरकारों तक पहुंचती है और वो इसके आधार पर वो अपनी नीतियां तैयार करती हैं.

अब सरकार ने जनगणना का डिजिटलीकरण करने का फ़ैसला किया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 18 नवंबर को बताया कि इस बार जनगणना में मोबाइल ऐप का इस्तेमाल किया जाएगा. इसमें डिजिटल तरीके से डेटा एकत्र किए जाएंगे. यानी यह कागजों से डिजिटल फॉर्मेट की तरफ बढ़ने की शुरुआत होगी.
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एनआरसी से अलग कैसे है एनपीआर?
केंद्र सरकार भारत के नागरिकों की बायोमेट्रिक और वंशावली डेटा तैयार करना चाहती है और इसकी अंतिम सूची जारी करने के लिए सितंबर 2020 का समय तय किया गया है.

यह प्रक्रिया किसी भी तरह से जनगणना (Census) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) से नहीं जुड़ी है.

एनआरसी की तरह एनपीआर नागरिकों की गणना नहीं है. इसमें वो विदेशी भी जोड़ लिया जाएगा जो देश के किसी हिस्से में 6 महीने से रह रहा हो.
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एनपीआर का लक्ष्य देश के प्रत्येक नागरिक की पहचान का डेटा तैयार करना है.

एनपीआर देश के सामान्य नागरिकों की सूची है. 2010 से सरकार ने देश के नागरिकों के पहचान का डेटाबेस जमा करने के लिए राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर की शुरुआत की.

गृह मंत्रालय के अनुसार सामान्य नागरिक वो है जो देश के किसी भी हिस्से में कम से कम 6 महीने से स्थायी निवासी हो या किसी जगह पर उसका अगले 6 महीने रहने की योजना हो.

गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक एनपीआर को सभी के लिए अनिवार्य किया जाएगा. इसमें पंचायत, ज़िला, राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर गणना की जा रही है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

डेमोग्राफिक डेटा में 15 कैटेगरी हैं जिनमें नाम से लेकर जन्म स्थान, शैक्षिक योग्यता और व्यवसाय आदि शामिल हैं.

इसके लिए डेमोग्राफिक और बायोमेट्रिक दोनों तरह का डेटा एकत्र किएमुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह जाएंगे.

बायोमेट्रिक डेटा में आधार को शामिल किया गया है जिससे जुड़ी हर जानकारी सरकार के पास पहुंचेगी.

विवाद भी इसी बात पर है कि इससे आधार का डेटा सुरक्षित नहीं रह जाएगा.

2011 में जब एक व्यापक डेटाबेस तैयार किया गया तो उसमें आधार, मोबाइल नंबर और राशन कार्ड की जानकारी इकट्ठा की गई थी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

लेकिन 2015 में इसे अपडेट किया गया और नागरिकों को अब इसमें अपना नाम दर्ज करवाने के लिए पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आईडी और पासपोर्ट की जानकारी भी देनी होगी.

नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 14(ए) के तहत वैध नागरिक बनने के लिए इसमें नाम दर्ज करना अनिवार्य है. मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

Wednesday, December 4, 2019

美国签署《香港人权与民主法案》:中国宣布反制禁止美舰访港和制裁非政府组织

针对美国总统特朗普上周正式签署《香港人权与民主法案》,中国外交部周一(12月2日)宣布实施两项反制措施,即日起暂停审批美军舰机赴香港的休整申请,以及对五所非政府组织“美国国家民主基金会”、“美国国际事务民主协会”、“美国国际共和研究所”、“人权观察”、“自由之家”。中国政府认为这些组织在香港修例风波中“表现恶劣”,但外交部没有详细交代制裁的具体内容。

中国外交部发言人华春莹在12月2日的例行记者会上公布有关措施,她批评美方不顾中方坚持反对,执意将法案签署成法,“严重违反国际法和国际关系基本准则,严重干涉中国内政”。华春莹敦促美方停止插手香港事务,并称中方会根据形势发展,采取进一步必要行动。

特朗普则在周一对记者说,他知道签署上述法案对贸易谈判“没有好处”,但认为中国依然有意达成贸易协议。“中国人总是在谈判......中国想要达成协议,我们姑且看看会发生什么。”

《香港人权与民主法案》通过后,美国国务卿将每年审视香港自治情况,决定是否继续给予香港特殊地位,包括是否继续成为独立关税区,以及授权美国政府可对侵害香港人权的人实施制裁。特朗普签署该法案时表示,希望签署这项法案能够让中国和香港的领袖和代表和睦地处理他们的分歧,为彼此带来长期的和平和繁荣。

路透社引述两名美方高级官员称,美中第一阶段贸易协议能否在今年内达成,还要看中方的行动。美国媒体Axios此前披露,特朗普签署香港法案,导致贸易协议延宕。报道引述美方信源称,在《香港人权与民主法案》立法之后,中国国家主席习近平需要时间稳定国内政治,美中贸易协议“最早只能在今年年终达成”,预料美国将取消或延后原定12月15日开始生效的关税。

“人权观察”对中国政府的制裁表示遗憾,其执行长罗斯(Kenneth Roth)在声明中写道:“与其针对一个意在捍卫香港民众人权的组织,中国政府更应该尊重这些权利。”

“人权观察”的总部位于纽约,在全球100个国家设有工作人员,不定期发表批评中国人权状况的报告。

另一所受制裁的非政府组织“自由之家”则在社交媒体上写道:“我们依然和香港站在同一阵线。”

华春莹批评,这些组织支持“反中乱港分子”,教唆他们从事“极端暴力犯罪行为”,“煽动港独分裂活动”,对当前香港乱局负有重大责任。

同样在制裁名单上的“美国国家民主基金会”,今年8月已被外交部一份42页的报告点名。报告指责该基金会在香港资助“颜色革命”,中国多个官媒曾指责基金会与中情局存在合作关系。此前,委内瑞拉、埃及和菲律宾政府曾对该基金会作出类似谴责。

该基金会回应中方制裁称,中方一再尝试转移外界对香港人真实自发的社会运动的关注。中国政府和官媒反复指其涉及编排或资助香港示威,“是绝对错误的”。

来自田纳西州的联邦参议员玛莎·布雷克本(Marsha Blackburn)在社交媒体上表示,美国支持民主和捍卫人权的举动让中国“感到害怕”,北京因而打击多个人权组织。

Tuesday, November 26, 2019

阿里巴巴香港上市:“回家”还是“救市”

11月26日,阿里巴巴在港交所上市,全天涨6.59%,收报187.60港元。这使阿里巴巴总市值超过4万亿港元,超越腾讯,登顶“港股一哥”。

马云未出现在阿里巴巴香港上市的现场,这位创始人错过阿里巴巴的又一次高光时刻。原因很可能是因为香港动荡的局势。

路透社此前报道称,由于香港局势,阿里巴巴推迟原定于八月底的IPO。而马云在9月11日正式退休。11月26日,见证赴港上市的人变成了他的继任者张勇。

当天在敲钟仪式上给阿里站台的还有香港前行政长官、阿里巴巴独立董事董建华,香港财政司司长陈茂波。

早上九点半,一声锣响,港交所满是代表阿里巴巴的鲜艳橙色,十分喜庆。港交所外,整个香港在经历了近六个月的社会动荡后,随着区议员选举中民主派大胜,示威的支持者认为他们坚持的民主诉求得到了普遍肯定。

然而,示威者和政府之间的分歧依然悬而未决,示威继续升级,或以低烈度长期持续,还未可知。而资本厌恶风险,香港局势暴力升级,往往很快在港股上显现。比如,11月13日之前三天,示威者进入大学校园,阻断交通,港股应声下跌一度达2.2%,在亚太主要股市之中表现最差。

港交所行政总裁李小加当天表示,“香港非常困难的时候仍然回来,心里感到欣慰。今天的香港,仍然困难,但相信今后还有很多浪迹天涯的公司都会回香港。”

对于“困难”的香港,截至今年10月中旬,港交所IPO共集资约1443亿元,暂时落后于纽约交易所及纳斯达克交易所,阿里巴巴上市可帮助港交所保住全球新股集资额前列的地位,甚至反超成为全球第一。

另一个好处是,对于当前日成交额不足千亿港元的港股而言,阿里这种新经济龙头的回归,可以提升整个港股流动,甚至带动更多科技公司的上市。

阿里巴巴董事局主席张勇在致投资者的信中表示,启动在香港的上市,是“20岁年轻的阿里巴巴一个新的起点”。

“在当前香港社会发生诸多重大变化的时刻,我们依然相信香港的美好未来。我们希望能贡献自己的绵薄之力,积极参与到香港的未来建设中”。

香港本地媒体则表达忧虑。《明报》社评称,阿里招股反应热烈,反映的只是这间科网巨头实力,香港长远前景仍然阴霾密布。香港风雨飘摇,法治和营商环境受到严重冲击,经济韧力备受考验,“阿里现象”只说明香港在全球化之下,目前仍是国际资本与中国资本重要交汇点,暂时还可“食老本”,绝对不能将香港涅盘重生、国际金融中心地位永续,视为理所当然。

无论从阿里巴巴主席张勇,还是港交所总裁李小加看来,这次上市更多是“回家”,而非“救市”。李小加表示,阿里巴巴重返港交所不存在救市情结,同时不断强调“非常感恩阿里巴巴多年后回家”。

“回家”一说源于两者的历史。12年前,阿里巴巴的B2B业务首次上市即选择香港,2012年在港股退市后,谋求作为电商集团进行整体上市,依然首选香港。

但阿里巴巴采取“合伙人制度”,造成阿里股份的“同股不同权”,与香港坚持的“同股同权”上市规则相抵触。两边无法达成一致,阿里巴巴舍港取美,赴纽交所上市,成为该所史上最大的IPO。

错过阿里巴巴的港交所IPO集资额也从2015年全球第一,跌至2017年全球第四。这刺激港交所于去年改革上市机制,放开“同股同权”的限制,为阿里“回家”铺平道路。

Tuesday, October 22, 2019

أقدم لؤلؤة في العالم تُكتشف في أبو ظبي

عُثر على أقدم لؤلؤة طبيعية في العالم على جزيرة في أبو ظبي في الإمارات العربية المتحدة.

واكتشفت اللؤلؤة، التي يبلغ عمرها حوالي 8000 سنة، أثناء عمليات تنقيب على جزيرة مروح، وهي العملية التي كشفت أيضا عن أقدم عناصر التراث المعماري الإماراتي.

وقالت السلطات إن اكتشاف هذه اللؤلؤة يُعد دليلا على أن الإمارات عرفت تجارة اللؤلؤ منذ العصر الحجري الحديث.

ومن المقرر أن تُعرض اللؤلؤة في متحف اللوفر أبو ظبي في وقت لاحق هذا الشهر.

وقال محمد خليفة المبارك، رئيس مجلس إدارة دائرة الثقافة والسياحة في أبو ظبي: "اكتشاف أقدم لؤلؤة في العالم يلقي الضوء إلى أن تاريخنا الاقتصادي والثقافي الحديث تمتد جذوره إلى فترة ما قبل التاريخ."

واستخدم العلماء الكربون المشع في تحديد عمر اللؤلؤة التي يرجع تاريخها إلى الفترة ما بين 5800 و5600 قبل الميلاد. وكان اللؤلؤ في ذلك الوقت يستخدم في صناعة المجوهرات وكانت تتم مقايضته مع بلاد الرافدين مقابل الخزف وغيره من السلع، وفقا لخبراء إماراتيين.

وأسفرت عملية التنقيب التي شهدتها جزيرة مروح عن اكتشاف أطلال لبنايات حجرية عُثر بداخلها على مشغولات من الخزف، والصدف، والحجارة علاوة على رؤوس أسهم مصنوعة من حجر الصوان.

ومن المقرر أن تُعرض "لؤلؤة أبو ظبي"، كما أطلق عليها مكتشفوها، في معرض ينظمه متحف لوفر أبو ظبي بعنوان "عشرة آلاف عام من الرفاهية" في 30 أكتوبر/ تشرين الأول الجاري.

أقر مجلس الوزراء اللبناني حزمة من الإصلاحات الاقتصادية لنزع فتيل الأزمة ومحاولة تهدئة أكبر احتجاجات تشهدها البلاد منذ سنوات.

يذكر أن الإصلاحات تتضمن إلغاء الضرائب الجديدة وخفض رواتب كبار المسؤولين إلى النصف.

وتأتي هذه الخطوة بعد خمسة أيام من الاحتجاجات التي اجتاحت أنحاء البلاد، وسط دعوات لإضراب عام.

وأكد رئيس الوزراء سعد الحريري أن الاجراءات الإصلاحية التي أقرها مجلس الوزراء لا تهدف إلى "مقايضة" المتظاهرين على ترك الشارع ووقف "التعبير عن غضبهم" من أداء الطبقة السياسية والأزمة الاقتصادية الخانقة.

وقال الحريري في كلمة بثها التلفزيون الرسمي، عقب انتهاء اجتماع لمجلس الوزراء الاثنين، مخاطبا المتظاهرين في بيروت ومختلف المناطق اللبنانية "لن أطلب منكم أن تتوقفوا عن التظاهر وعن التعبير عن الغضب" مضيفاً "أنتم من تتخذون هذا القرار ولا أحد يعطيكم المهلة".

وخرج مئات الآلاف من اللبنانيين إلى الشوارع للتعبير عن غضبهم على إجراءات التقشف التي تنتهجها الحكومة، متهمين النخبة السياسية بالفساد.

ويعاني الاقتصاد اللبناني من ركود تام في ظل تحسن طفيف جدا في معدل النمو وارتفاع المديونة العامة للبلاد.

وأثارت الضرائب الجديدة المقترحة، بما في ذلك ضريبة الاتصال عبر الانترنت التي ألغيت بسرعة بعد الإعلان عنها يوم الخميس الماضي، موجة من الغضب بين المواطنين، إضافة إلى المشاكل التي تعاني البلاد منها كتدهور البنية التحتية وانقطاع الكهرباء وتراكم القمامة في الشوارع.

Tuesday, October 8, 2019

Амазонский синод в Ватикане: отменит ли папа Франциск запрет на брак для священников?

Ватикан готов обсуждать идею рукоположения женатых католиков в священники - но только если речь идет об индейцах Южной Америки.

Будущее католической церкви в отдаленных регионах Бразилии, где жители джунглей видят священника порой не чаще раза в год, стало поводом созвать специальную ассамблею синода, посвященную Амазонии.

Амазонский синод продлится три недели: папа Франциск и 184 епископа из Южной Америки будут - как ожидается, горячо - обсуждать проблемы Амазонии в целом, в том числе вырубку дождевых лесов, которая, как утверждают ученые, вносит существенный вклад в глобальное потепление.

Рабочий документ синода похож на проект резолюции ООН: в повестке дня и миграция, и урбанизация, и экология, и - в части III - миссионерская роль католической церкви среди туземных народов региона.

Пункт об отмене целибата в документах синода привлек всеобщее внимание. Но предложение касается исключительных случаев: в туземных общинах предлагается назначать в служение более старших, авторитетных мужчин, предпочтительно из местных, - даже если они женаты.

Епископы из разных стран континента поддерживают такой выход из кадрового кризиса, с которым сталкивается католическая церковь. Священников в Амазонии остро не хватает - а ведь только священник имеет право совершить таинство причастия, которое является ключевой частью каждой мессы.

В 85% селений в регионе ежевоскресное причастие невозможно, а в некоторых священника видят всего раз в год.

"Папа Франциск, поскольку он сам из Латинской Америки, инстинктивно чувствует проблемы региона, - говорит профессор Центра католических исследований Грегори Райан. - Обеспокоенность тем, как мало священников в Амазонии, - действительно фундаментальная вещь, лежащая в основе [этих проблем]. Католики убеждены, что евхаристия - сердце жизни христианской общины".

Единогласного одобрения для столь радикального предложения на синоде ожидать не стоит. Эту встречу епископов в Ватикане уже называют скандальной. В прессу просочилось высказывание немецкого кардинала Вальтера Брандмюллера, который сказал, что с Амазонского синода начнется саморазрушение Римской церкви.

В любом случае роль этого совещания лишь рекомендательная - окончательное решение примет папа.

Для многих целибат неотделим от служения Богу. Церковь учит, что священнослужитель состоит в союзе лишь с Богом и никакие мирские заботы, такие как жена и дети, не должны отвлекать его от служения.

"Прихожане чувствуют, что у священника всегда будет для них время, они не вторгнутся в его частную жизнь, когда придут к нему со своей проблемой", - говорит профессор Линда Вудхэд, специализирующаяся на социологии религии.

Monday, September 30, 2019

Младенцы в доисторическую эпоху пили молоко животных. Это привело к бэби-буму

Младенцев, живших более 3 тысяч лет назад, кормили молоком животных, выяснили ученые.Археологи обнаружили следы животных жиров в древних глиняных сосудах, получив уникальную возможность выяснить, чем питались младенцы в периоды бронзового и железного века.

Исторические находки указывают на то, что грудным детям давали молоко животных в дополнение к материнскому молоку, и это могло стать причиной всплеска рождаемости.

Доподлинно неизвестно, молоко какого животного использовалось, но, скорее всего, оно было козье или коровье.

Впервые удалось узнать, из чего состоял рацион младенцев доисторической эпохи, рассказала сотрудник Бристольского университета Джули Дюнн.

"Так здорово, что есть подобное окно в прошлое. Можно представить, как матери и семьи растили детей несколько тысяч лет назад", - сказала она в интервью Би-би-си.

"Тот факт, что младенцев начали кормить молоком, означает, что женщины в доисторическую эпоху впервые получили возможность рожать больше детей. Это привело к резкому росту населения, что в итоге стало основанием для появления современного общества", - добавила она.

Примерно 7 тыс. лет назад стиль жизни людей в Европе существенно изменился. Закончилось время охотников и собирателей, и люди начали заниматься земледелием и скотоводством.

Человек начал потреблять молочные продукты примерно 6 тыс. лет назад, но мало что было известно о рационе младенцев того времени.

По имевшимся археологическим свидетельствам ученые пришли к выводу, что после шести месяцев младенцев, скорее всего, кормили каким-то детским питанием помимо грудного молока, но подробности их диеты были неизвестны.

В поисках ответа археологи обратились к керамическим изделиям, в частности к глиняным сосудам, которые использовались более 5 тыс. лет назад.

Они исследовали содержимое трех маленьких "бутылок", обнаруженных в могилах младенцев, которые жили в периоды бронзового и железного века (с 1200 до 450 г. до н.э.).

Молекулярный анализ выявил жиры животного происхождения, в том числе из свежего молока.

Подобное кормление было сопряжено с рисками, поскольку мыть кувшины было нелегко, и ребенок мог подхватить инфекцию.

Но переход с грудного кормления, возможно, поспособствовал увеличению рождаемости, став одним из факторов стремительного роста населения в тот период.

Археолог Сайан Халкроу из университета Отаго в Новой Зеландии, комментируя находку, сказала, что необходимо провести дополнительные исследования, чтобы выяснить последствия добавления молока в детский рацион.

"Подобные знания вкупе с данными о заболеваниях изучаемого человека могут помочь лучше понять значимость молока животных для жизни детей доисторической эпохи", - сказала она.

Monday, September 23, 2019

"Чернобыль", "Дрянь" и "Игра престолов" - победители "Эмми"

В Лос-Анджелесе в 77-й раз вручили премии "Эмми" за лучшие телесериалы года. Одним из главных триумфаторов этого года стал британский сериал "Дрянь" (Fleabag), победивший в четырех номинациях.

"Дрянь" получила "Эмми" как "Лучший комедийный сериал", "Лучшая актриса в комедийном сериале" (актрисе и автору сериала Фиби Уоллер-Бридж), "Режиссура комедийного сериала" (Гарри Брэдбир), сценарий комедийного сериала (Фиби Уоллер-Бридж).

"Это замечательно и обнадеживающе, что у неприличной, извращенной, злой и испорченной женщины получилось завоевать "Эмми", - сказала Уоллер-Бридж, имея в виду главную героиню сериала.

Ее победа стала неожиданностью, поскольку главной фавориткой была американская актриса Джулия Луи-Дрейфус за главную роль в "Вице-президенте" (Veep). Ее игра в сериале была отмечена "Эмми" уже шесть раз.

Многих интересовало, сколько статуэток получит "Игра престолов" (Game of Thrones), полюбившийся миллионам телезрителей по всему миру. Восьмой, финальный сезон вышел на экраны весной.

В итоге сериал-фэнтези победил в двух номинациях - "Лучший драматический сериал" и "Лучший актёр второго плана в драматическом сериале" (Питер Динклэйдж за роль Тириона Ланнистера). Дикнлэйдж обошел своих коллег по сериалу - Альфи Аллена (Теон Грейджой) и Николая Костер-Валдау (Джейме Ланнистер), которые также номинировались в этой категории.

Лучшим мини-сериалом был признан "Чернобыль", рассказывающий о взрыве на АЭС в 1986 году. Его режиссер Юхан Ренк победил в номинации "Режиссура мини-сериала, фильма или драматической программы", а сценарист Крейг Мейзин был признан лучшим в номинации "Сценарий мини-сериала, фильма или драматической программы".

Актер Билли Портер стал первым геем-афроамериканцем, получившим "Эмми" в номинации "Лучший актёр в драматическом сериале". Он сыграл главную роль в эпизоде сериала "Поза" (Pose).

Нынешняя церемония "Эмми" прошла без ведущего - это случилось всего лишь в четвертый раз за всю историю награждения. Первая статуэтка была вручена в 1949 году.